Cambodia and Thailand War: थाईलैंड-कंबोडिया सीमा पर खूनखराबा, चीन की भूमिका पर सवाल

Cambodia and Thailand War: दक्षिण-पूर्व एशिया में अचानक एक नया युद्ध मोर्चा खुल गया है. थाईलैंड और कंबोडिया के बीच बरसों पुराना सीमा विवाद अब हिंसक टकराव में तब्दील हो चुका है. 24 जुलाई की सुबह से शुरू हुए संघर्ष में अब तक 14 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है, और हालात बेकाबू होते जा रहे हैं.

यह विवाद सिर्फ दोनों देशों के बीच का नहीं है, इसके पीछे भू-राजनीतिक ताकतों की लंबी बिसात बिछी है. खासतौर पर चीन की गतिविधियां और उसका कंबोडिया के साथ गहराता गठजोड़ इस आग में घी डालने जैसा साबित हो रहा है.

धमाकों के साथ शुरू हुई सुबह (Cambodia and Thailand War)

विवाद की शुरुआत सुबह करीब 7:30 बजे हुई, जब थाईलैंड की सीमा के पास स्थित ता मुएन थोम मंदिर के ऊपर कंबोडियाई सेना का एक ड्रोन मंडराता देखा गया. इसके कुछ ही मिनटों में सीमा के निकट कंबोडियाई सैनिकों की घुसपैठ की कोशिश हुई. फिर 8:20 बजे अचानक थाई सैन्य चौकी पर फायरिंग शुरू हो गई. इस घटना के बाद हालात तेजी से बिगड़े. 9:40 बजे तक कंबोडिया की ओर से BM-21 रॉकेट लॉन्चर के ज़रिए थाईलैंड के अंदरूनी इलाकों पर हमला किया गया. सिसाकेत और सुरिन प्रांतों में मंदिरों और रिहायशी इलाकों में रॉकेट गिरने से जान-माल का भारी नुकसान हुआ. जवाबी कार्रवाई में सुबह 10:48 बजे थाई वायुसेना ने अपने 6 F-16 फाइटर जेट युद्ध क्षेत्र में तैनात कर दिए, जिन्होंने कंबोडिया की सीमा के भीतर सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया.

मंदिर से शुरू हुई रार

इस पूरी लड़ाई की जड़ें एक ऐतिहासिक मंदिर से जुड़ी हैं जो दोनों देशों के बीच विवाद का बड़ा कारण रहा है. कंबोडिया का कहना है कि यह मंदिर उसकी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है और वह इसके जरिए पर्यटन से हर साल मोटी कमाई करता है. वहीं, थाईलैंड इस क्षेत्र पर दावा करता आया है. मंदिर पर स्वामित्व का सवाल भले धार्मिक लगे, लेकिन इसके पीछे अर्थव्यवस्था और प्रभुत्व की गहरी राजनीति छिपी है. बीते वर्षों में भी यहां छोटे पैमाने पर झड़पें होती रही हैं, मगर इस बार मामला सीधे युद्ध में बदल चुका है.

कौन किसके साथ: चीन और अमेरिका की चालें

थाईलैंड और कंबोडिया के बीच के इस संघर्ष ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी हलचल मचा दी है क्योंकि दोनों देशों के पीछे दो बड़ी महाशक्तियां खड़ी हैं. थाईलैंड को अमेरिका का सामरिक समर्थन प्राप्त है. उसके पास अमेरिका निर्मित आधुनिक हथियार और फाइटर जेट हैं. दूसरी ओर, कंबोडिया चीन का करीबी सहयोगी है. चीन वहां अरबों डॉलर का निवेश करता है और हथियार भी मुहैया कराता है. “वन बेल्ट, वन रोड” प्रोजेक्ट –जो चीन की महत्वाकांक्षी योजना है – इन दोनों देशों से होकर गुजरता है. ऐसे में चीन के लिए यह इलाका रणनीतिक दृष्टि से बेहद अहम है. जानकारों का मानना है कि बीजिंग इस तनाव का फायदा उठाकर अमेरिका के प्रभाव को कमजोर करना चाहता है.

लंबी लड़ाई के दूरगामी नतीजे

अगर यह टकराव जल्द नहीं थमता, तो दोनों देशों को अपनी सेनाओं को मजबूत करने के लिए रक्षा बजट में भारी बढ़ोतरी करनी होगी. थाईलैंड को अमेरिकी हथियार खरीदने होंगे, जबकि कंबोडिया को चीन से और ज्यादा सहायता लेनी पड़ेगी. इसका सीधा लाभ चीन को मिलेगा – उसे दोनों देशों में अपना दबदबा बढ़ाने का अवसर मिलेगा. एक ओर कंबोडिया पर उसका नियंत्रण गहरा होगा, दूसरी ओर थाईलैंड पर भी वह अमेरिकी प्रभाव को चुनौती देने की स्थिति में होगा.

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Author

  • Sarthak Arora

    सार्थक अरोड़ा एक युवा और विचारशील लेखक हैं, जो अंतरराष्ट्रीय राजनीति, कूटनीति, और सामरिक रणनीति जैसे विषयों पर गहरी समझ और विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण के लिए जाने जाते हैं। The Ink Post Hindi में वह उन खबरों को आवाज़ देते हैं, जो केवल सतह पर नहीं, गहराई में जाकर समझने की माँग करती हैं।

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