भारत ने एक और बड़ी छलांग लगाने की तैयारी की है. ब्रह्मोस मिसाइल, जो पहले ही अपनी सुपरसोनिक स्पीड से पाकिस्तान और चीन के लिए चुनौती बन चुकी है, अब हाइपरसोनिक स्पीड तक पहुंचने वाली है. यह बदलाव न सिर्फ भारत की रक्षा तंत्र को और सशक्त बनाएगा, बल्कि यह दुनिया भर में भारत की शक्ति को और भी मजबूती से स्थापित करेगा.
ब्रह्मोस-2K, जो अब तक के ब्रह्मोस मिसाइल का अगला कदम है, हाइपरसोनिक स्पीड पर आधारित होगी. इसका मतलब यह है कि इसकी गति 7-8 मैक तक होगी, जो मौजूदा ब्रह्मोस मिसाइल की स्पीड से कई गुना ज्यादा होगी. यह मिसाइल इतनी तेज़ होगी कि न सिर्फ दुश्मन के एयर डिफेंस सिस्टम को चकमा दे सकेगी, बल्कि उसे पूरी तरह से नष्ट करने की क्षमता भी रखेगी.
अब तक, इस प्रोग्राम को भारत और रूस मिलकर विकसित कर रहे हैं. यह रूस की जिरकॉन मिसाइल की टेक्नोलॉजी पर आधारित होगा, और इसमें स्क्रैमजेट इंजन का इस्तेमाल किया जाएगा. इससे मिसाइल की गति और भी तेज हो सकेगी. इसके अलावा, यह न्यूक्लियर वारहेड भी लेकर जा सकती है, जो इसे और खतरनाक बनाता है.
भारत और रूस की साझेदारी: एक नई मिसाइल तकनीक
भारत और रूस के बीच ब्रह्मोस-2K पर काम करने का समझौता एक बड़ी रक्षा साझेदारी का हिस्सा है. इस परियोजना का उद्देश्य दोनों देशों के बीच मिसाइल तकनीक को और उन्नत करना है. भारतीय रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) और रूस के NPO Mashinostroyeniya के बीच यह जॉइंट वेंचर करीब 10 साल पहले शुरू किया गया था.
अब, जब पाकिस्तान के खिलाफ ब्रह्मोस ने शानदार सफलता हासिल की है, तो इस प्रोग्राम को फिर से तेज़ी से लागू किया जा रहा है. ब्रह्मोस-2K की रेंज करीब 1500 किलोमीटर हो सकती है, जो पाकिस्तान और चीन दोनों के लिए एक गंभीर सुरक्षा चुनौती हो सकती है.
ब्रह्मोस-2K की तकनीकी ताकत
ब्रह्मोस-2K की सबसे खास बात उसकी गति और मैन्युवरिंग क्षमता होगी. इसे विकसित करते समय इसका ध्यान इस बात पर रखा गया है कि यह किसी भी एयर डिफेंस सिस्टम को चकमा दे सके. इसके रडार सिग्नेचर को इतना कम किया जाएगा कि इसे पकड़ पाना लगभग असंभव होगा. इसके अलावा, इसमें स्क्रैमजेट इंजन का इस्तेमाल किया जाएगा, जो इसकी हाइपरसोनिक गति को सुनिश्चित करेगा.
इसकी गति वायुमंडलीय दबाव के कारण कम नहीं होगी, जिससे यह अपने लक्ष्य तक पहुंचने में अधिक सक्षम होगी. वर्तमान ब्रह्मोस मिसाइल की स्पीड 3.5 मैक है, जबकि ब्रह्मोस-2K की स्पीड 7-8 मैक तक पहुंचने की संभावना है.
भारत की मिसाइल तकनीक: आत्मनिर्भरता की दिशा में एक और कदम
भारत ने पिछले कुछ सालों में अपनी मिसाइल तकनीक में काफी सुधार किया है और अब देश के पास ऐसी मिसाइल बनाने की क्षमता है, जो किसी भी दुश्मन को चकमा दे सके. DRDO ने हाल ही में एक स्वदेशी स्क्रैमजेट इंजन का परीक्षण किया, जो ब्रह्मोस-2K के विकास में अहम भूमिका निभाएगा.
इस तकनीक के कारण, भारत को रूस पर कम निर्भर रहना पड़ेगा, और इसका विकास पूरी तरह से भारत के स्वदेशी प्रयासों पर आधारित होगा. यह भारत के मिसाइल कार्यक्रम में एक और अहम मील का पत्थर साबित हो सकता है.
भारत की बढ़ती ताकत: वैश्विक सुरक्षा पर असर
इस समय दुनिया में कई देश हाइपरसोनिक मिसाइल बनाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन अब तक रूस और चीन ही इसमें सफल हो पाए हैं. अमेरिका का हाइपरसोनिक मिसाइल कार्यक्रम कई बार असफल हो चुका है. लेकिन भारत ने इस दिशा में जो प्रयास किए हैं, उनसे वह जल्द ही हाइपरसोनिक मिसाइल बनाने में सफल हो सकता है.
भारत ने पहले ही मिसाइल विकास के लिए एक मजबूत इकोसिस्टम तैयार किया है. इसके पास अपनी मिसाइलों को टेस्ट करने के लिए अत्याधुनिक सुविधाएं हैं, जो इसे दुनिया के शीर्ष देशों में शामिल करती हैं.
ब्रह्मोस-2K का भविष्य
भारत और रूस के बीच हुए इस समझौते के बाद, ब्रह्मोस-2K के दो वैरिएंट विकसित किए जाएंगे. पहला वैरिएंट, जो हाइपरसोनिक स्पीड पर आधारित होगा, अगले साल के अंत तक तैयार हो सकता है. वहीं, दूसरा वैरिएंट, जो पूरी तरह से स्क्रैमजेट इंजन पर आधारित होगा, 2027 तक तैयार किया जाएगा.
यह समय सीमा देखते हुए, भारत और रूस की साझेदारी इस मिसाइल के विकास में तेज़ी से आगे बढ़ रही है. आने वाले सालों में ब्रह्मोस-2K भारत की रक्षा तंत्र को और भी मजबूती से स्थापित करेगा.
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