What Is RIC: क्या है RIC जिसके दोबारा बनने की आहट से ही कांप उठे डोनाल्ड ट्रंप’

What Is RIC: बीते कुछ समय से वैश्विक राजनीति में नए ध्रुवों के उभरने की चर्चा जोरों पर है. पश्चिमी प्रभुत्व को संतुलित करने की कवायद में अब रूस ने एक बार फिर भारत और चीन के साथ मिलकर पुराने त्रिपक्षीय मंच RIC (रूस-भारत-चीन) को सक्रिय करने की पहल शुरू कर दी है. 29 मई को पर्म शहर में एक सुरक्षा सम्मेलन में रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने कहा कि अब समय आ गया है कि RIC की बैठकें फिर से शुरू हों.

90 के दशक के अंत में रूस के पूर्व प्रधानमंत्री येवगेनी प्रिमाकोव ने RIC की परिकल्पना की थी. इसका उद्देश्य एक ऐसे बहुध्रुवीय मंच का निर्माण करना था जो अमेरिका-प्रधान वैश्विक ढांचे के विकल्प के रूप में काम कर सके. 2002 से 2020 तक RIC देशों के विदेश मंत्रियों की कई बैठकें हुईं, जिनमें राजनीतिक, आर्थिक, रणनीतिक और सुरक्षा मुद्दों पर समन्वय किया गया. हालांकि, 2020 में गलवान घाटी में भारत-चीन सैन्य टकराव के बाद इस मंच की गतिविधियां ठप पड़ गईं.

RIC को पुनर्जीवित करने की वजहें

पिछले कुछ महीनों में भारत और चीन के बीच सीमा तनाव कुछ हद तक कम हुआ है. प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हुई बातचीत से रिश्तों में नरमी आई है. रूस इस मौके को भुनाकर RIC को फिर से सक्रिय करना चाहता है. रूस का मानना है कि नाटो और क्वाड जैसे पश्चिमी सैन्य गठबंधन एशिया में अस्थिरता फैला रहे हैं. सर्गेई लावरोव ने आरोप लगाया कि नाटो भारत को चीन के खिलाफ मोहरे के तौर पर इस्तेमाल करना चाहता है. ऐसे में RIC एक ऐसा मंच बन सकता है जो एशियाई देशों को आपसी सहयोग से अपने मुद्दे सुलझाने का विकल्प दे.

भारत की भूमिका और रणनीतिक दुविधा

भारत के लिए यह स्थिति बहुत संवेदनशील है. एक तरफ वह अमेरिका और क्वाड के साथ अपने रिश्ते मजबूत कर रहा है, वहीं दूसरी ओर वह RIC जैसे मंचों में भागीदारी के जरिए अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखना चाहता है. भारत-चीन सीमा विवाद अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है, जिससे भारत की भूमिका सीमित दिख सकती है. लेकिन अगर संबंधों में स्थिरता आती है, तो भारत इस मंच का उपयोग यूरेशिया में एक संतुलनकारी शक्ति के रूप में कर सकता है.

अमेरिका की चिंता बढ़ना तय

भारत को अमेरिका ने अपनी इंडो-पैसिफिक रणनीति में एक अहम साझेदार माना है. यदि भारत RIC में सक्रिय भूमिका निभाता है, तो यह अमेरिका को यह संकेत भी देगा कि भारत पूरी तरह पश्चिमी पाले में नहीं है और वह रणनीतिक स्वतंत्रता को प्राथमिकता देता है. इसके अलावा, RIC की सक्रियता रूस और चीन को एक और कूटनीतिक मंच पर मजबूती देगी, जिससे अमेरिकी प्रभाव को चुनौती मिल सकती है.

RIC: प्रतीकात्मकता से आगे की सोच

यह पहल केवल एक कूटनीतिक औपचारिकता नहीं है, बल्कि यूरेशिया को बहुध्रुवीय व्यवस्था की ओर ले जाने की रूस की दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा है. अगर भारत, चीन और रूस आपसी मतभेदों से ऊपर उठकर साझा हितों पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो RIC वैश्विक राजनीति में एक अहम ध्रुव बन सकता है.

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Author

  • Sarthak Arora

    सार्थक अरोड़ा एक युवा और विचारशील लेखक हैं, जो अंतरराष्ट्रीय राजनीति, कूटनीति, और सामरिक रणनीति जैसे विषयों पर गहरी समझ और विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण के लिए जाने जाते हैं। The Ink Post Hindi में वह उन खबरों को आवाज़ देते हैं, जो केवल सतह पर नहीं, गहराई में जाकर समझने की माँग करती हैं।

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